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- September 21, 2024
- Urdu Lyrics

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MUZTAR Lyrics Song Info
Song: MUZTAR
Penned/Performed: FADI
Prod by: DOTXB
Mixed & Mastered: MAAZI
AW by: MAAZI
Released: Sep 21, 2024
MUZTAR Lyrics
जिंदगी कन है जीने का मन है कोई हाल भी ना
पूछे सब अपना ही मगन है सी
से ये कैसे हैं हालात तनहा गुजरती हर रात
खुद से तंग खुद की सात करता ना किसी से
बात खाई यारों से है बात बच्चा कोई भी ना
साथ खुद के हौसले को दादर और जिस्म अभी
साथ खतरे में देखो हर एक भेद हो गया है
खून अपने ों का कितना सफेद हो गया है मां
फिक्र मंद रहती मुझे कॉल करके बोले फती
कहां रह गया है रात का एक हो गया जी करे
चला जाऊं दश्त करता रहूं वहां गस्त अपने
आप मे रू मस्त फैसला ये जबरदस्त क्यों
परेशान है शख्स बोलूं देख के अपना अख जो
करे हौसले ना बस्त कहलाती ना शिकस्त मैं
सुधर जाऊं ऐसा कोई इमकान ही नहीं है मैं
कितना बिगड़ चुका ये देहान ही नहीं है
माना करता हूं बुराई पर फिर होती है न दमत
तू कैसे कह रहा मुझ में बाकी मान ही नहीं
है गिले बाप से हैं बत काश भर के रहते
दोस्त बात करते हम रोज एकत की होता खौफ
अबे सार मुझसे लोग गुस्से में बदला ये रोग
राज इशा होने बोत भी कलम दिता रोग कला
छोड़ी पर कला मुझसे ना हुई अलैदा शायरी पे
गिफ्ट मेरी पहले से भी ज्यादा उसके साथ
कभी भी तुम मुझसा ना करना मेरे जैसा कोई
कभी हुआ अगर पैदा जिकर हो जाता है बड़ा जब
घर में चले पाके डराती ना मौत उसे ना
डराते नाके खा भी मरेगा तो वो करता आखरी
कोशिश जान हथेली पे रख के लूटता है जाके
किसी ने पूछा डर किन बातों से है मिला के
गले तक जो पहुंचे उन हाथों से है जो किसी
वक्त भी छोड़ जाए उन नातों से है जो करें
जुर्म पे आमादा डाउन रातों से है ये
जिंदगी कठिन है ना जीने का मन है कोई हाल
भी ना पूछे सब अपना ही मगन है गले है बो
सभी से पूछ हुआ तभी मैं इंसाना हूं अभी
मैं पर हो जाऊंगा कभी मैं कभी सिर्फ मेरा
लगे और कभी लगे गैर कभी बिन के सुन ले कभी
पकड़ वाए पैर कभी शहद सी जुबान कभी उगलता
है जैर कभी उल्फत से नवाजे और कभी टाा आता
है गैर खैर अब आ गया कोई खुश कोई अफसुर्दा
खुश हो जाए अफसुर्दा भी जो पाए मुझे
मुर्दा कुछ मुझे डराए कि तू शर से गिरेगा
गिरने का होता खौफ इतना ऊंचा ना मैं उड़ता
बब आसानी करे यार मे थानों में है हरीफ
अपनों में ना के बेगानों में है हम असल
में भी वोजों के गानों में है तेरी भूल हम
अब भी तेरे दीवानों में है जिन से नफरत
उनके पीठ पीछे करता हूं बुराई वो बुराई जो
जुरत रखूं मुंह पे करने की भाई अना से
लबालब हूं सवाल भी कबूल है अरूज ना चाहता
वो जो मिले करके चटाई ये हमला अवर हुए जब
मजूद ही ना था मैंने तब शोरत की जब इनका
वजूद ही ना था जखमी दे के शेर कुत्तों ने
किया था हमला फड़ने से बा शर इसके बावजूद
भी ना रा दिल कितने तोड़े मुझे कोई मलाल
नहीं है बोले जज्बात ना तुझ में हा फिलहाल
ल नहीं है तेरी शरीर ठीक ठाक पर कमाल नहीं
है तूने पढ़ा तो पर समझा इकबाल नहीं है
क्या तुम में से किसी ने यह बात गोर की ना
भी ू नाम चले ऐसी छाप छोड़ द ये मेरा नहीं
कमाल ये रब का करम बिना कुछ बोले भी बंद
कर सकता हूं बोलती सब बोले वापस आजा तेरी
कमी बहुत सताती है तेरी शायरी उस्ताद हमें
जीना सिखाती है अजीब मिजाज कभी बड़ी से
बड़ी बात बुला दूं कभी छोटी सी बात मेरे
दिल को लग जाती है फिर से वक्त मांगूंगा
भले दे दो कलील अपनों से फिर एक दफा सबर
की अपील जो चाहते तुम कर देता अगर होता
में मैं लिख सकता हूं ने लिख सकता ना तकदीर

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